तुम ने पूछा मुझ से की मैं कौन हूँ
देखा नहीं ये तुमने की मैं मौन हूँ
जब तक मैं खुद को नहीं ढूंढ पाऊँगा
तब तक मैं तुमको कैसे बताऊँगा
कोशिश बहुत की है मैंने
मगर इतना आसन नहीं है खुद को ढूढ़ पाना
अपने अन्दर की तंग गलियों में ,कभी आना, कभी जाना
खुशियों के भवंर में नहीं डूबना ,दर्द के समंदर को तैर जाना
अब में खुद को ढूँढूं भी कैसे
मेरे नजरों में न जाने कितने चश्में चढ़े हैं
कुछ विरासत में मिले थे मुझको, कुछ मैंने किताबों में खुद से पढ़े है
मैं कभी रंग देखता हूँ , कभी ढंग देखता हूँ
हर एक पल को मैं बहते समय के संग देखता हूँ
चकाचौंध में होने की मैं बस यूँ ही बह जाता हूँ
कोशिश तो करता हूँ लेकिन खुद को मैं ढूंढ नहीं पता हूँ
आइना कोई फर्क नहीं है देखता मुझ में , मेरे चेहरे में
पर वो चेहरा मैं नहीं , मेरे पहचान है
उसके छलावे में कहीं दफन कोई इंसान है
सब लिखा बदल डालूँ मिले ऐसे कोई सियाही
पा लूं जो खुद को तो मैं , मुझ को मिले रिहाई
जब तक मैं खुद को नहीं ढूंढ पाऊँगा
ReplyDeleteतब तक मैं तुमको कैसे बताऊँगा ...
so true...
पा लूं जो खुद को तो मैं , मुझ को मिले रिहाई ..
bahut sundar..
अपने अन्दर की तंग गलियों में ,कभी आना, कभी जाना ...Gehri aur khoobsoorat kavita .
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