Sunday, October 09, 2011

बहुत खूबसूरत हैं चांदनी के पैर


चुप सी थी 

खुद में ही सिमटी 

रोशनी लपेटे 


मतवस्त ....

अपने नूर से वो 

चारों दिशाएं लांघती 


बेपरवाह...

अपनी जादूगरी से 

देहान सारा बंधती 


नजाकत 

के सलीकों को

नए आयाम  देती वो


तरन्नुम 

के उसूलों को 

नए से नाम देती वो 


खामोश 

नज़रों से 

कोई दास्ताँ  कहती वो



फिर भी

जुदा जुदा 

खुद से ही रहती वो 



छलकती रोशनी थी वो  

आँच के बगैर 

बहुत खूबसूरत हैं 

चांदनी के पैर

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