Friday, August 26, 2011

सर्दी के दिन ऐसे टूटे

जब माल रोड उदास होती है

और धूप मैं सुस्ताता रिक्शा स्टैंड मूंगफली के छिलकों से बतियाता है,

ठंडी सड़क के कोने मैं ,पाले में सिहरता नन्हा दिन 

तब सूखे पत्ते सुलगता है, 

नैना देवी के गुमसुम घंटे ,आपस में बाते करते हैं,

लहरें उबासी लेती हैं, जब कोई नहीं वहाँ आता है .
..
आँगन में अँधेरा पसरता है ,सूरज भी नहीं उठता जल्दी,

फ्लाट्स में बिखरे खोमचों में कोई अब चाय नहीं बनता है ...

चाइना पीक चुपचाप खड़ा है, कुछ सोच रहा है गहरा सा,

शहर की गलिओं में क्योँ पड़ा है ख़ामोशी का पहरा सा

है दिन चढ़ा अब तो सर पर , सूरज नज़र नहीं आता  है     

कोहरे की रजाई के अन्दर घुट कर वो  सुस्ताता है 

पेड़ है चुप , पंछी  रूठे ,

सर्दी के दिन ऐसे टूटे 

लाइब्रेरी का हरा अहाता अकेला घबराता  है  

ताल के पानी में खुद का वो अक्स नहीं जो पता है .

1 comment:

  1. kitni jiwant tasveer, skand. still the winters in nainital are redolent with a mysterious passion

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