Monday, August 22, 2011


मुझे अब भी  तलाश है 
उस लकड़ी की काठी की ,जिस पर वो घोडा था 
गुलज़ार साहब ने, 
जिसकी दुम पर, मारा हथोडा था 
शायद सन ८४ की बात है 
की मैं घर से कम्बल उठाये 
निकल  ही पड़ा था सब्जी मंडी तरफ ..
की माँ ने समझाया 
की जेठ की धूप में बर्फ नहीं पड़ती 
मगर मुझे फिर भी यकीन न आया 
... मुझे लगा माँ मुझे बहला रही है 
घोड़े की कहानी झुटला  रही है ...
सोचा  
की कहीं वो तगड़ा अरबी घोडा 
मुझे मिल जाये तो ...
अरबी घोडा ...?
माँ से पूछ ही लिया 
की वो घोडा अरबी की सब्जी खाता  है 
माँ मुस्कुराई और बोली 
नहीं वो घोडा किसे दूर देश से आया है 
इसी लिए अरबी कहलाया है 
तुम उसे नहीं ढूंढ़ पाओगे 
कोशिश करोगे  तो  गुम हो जाओगे 
 लगा 
माँ फिर से फुसला रही है
घोड़े की कहानी झुटला रही है ....
न जाने फिर कब आँख लगी 
और मैं सो गया 
और न जाने कब सबेरा हो गया 
......
मुझे अब भी क्योँ यकीन हैं 
वो तगड़ा अरबी घोडा 
यहीं कहीं है 

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