Thursday, June 23, 2011

चलो ...

उजाले को छील कर चलो कतरनें बांटें
तुम मुठ्ठी भर लो
मैं भी मुठ्ठी भर लूँ
चलो संग मिल कर अंधेरों में झाँकें
चाँद तो बड़ा है
बांध नहीं सकते
रात की गली में सितारे तो टांके
जुग्नों का महफ़िल
सजाएँ रात भर
गर्दिश के गली में उम्मीद तो बांटें
तितलियों से मांगें
रंगों की चाशनी
इन्द्रधनुष की बादलों को पिचकारियाँ मारें
उम्मीद की मिश्री
जलेबियों में भर दो
चलो साँथ मिल कर दो चार तो बांटें

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