Thursday, June 16, 2011

हम तुम .....दोनों

लकीर जो हमको बांटती है
वो रब ने नहीं बनाई
तेरे दिल में,मेरे दिल में
आग कुदरत ने नहीं लगाई
जब तू जन्मा ,जब में जन्मा
हम दोनों हमजोली थे
हाथ पकड़ कर हम दोनों खेले आंख मिचोली थे
फिर क्यूँ अब हम रंग बदल कर
खेल रहें है खून की होली
नफरत भर कर रगों में अपनी
क्योँ बोले विद्रूप की बोली
चल बता क्या फर्क है कोई
मेरे अल्लाह तेरे राम में
एक सिक्के के है दो पहलु जब वो
क्या रखा है नाम में
तू काबे में शीश झुकाए
में कशी पढू नमाज़
वो बुरा न मानेगा
नहीं ये कोई राज़
तो फिर क्यूँ न मिलकर हम
फिर से भाई - भाई बन जाएँ
भूल कर मंदिर - मस्जिद
आ गले लग जाएँ

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