कुछ रिश्ते ऐसे भी जिनका कोई छोर नहीं
कुछ रिश्ते ऐसे भी जिनको बंधे कोई डोर नहीं
कुछ रिश्ते जो पानी की लकीरों से लिखे गए
कुछ रिश्ते जो कहानी से कहे गए
कुछ रिश्ते ....
रेशम से जो उलझे तो उलझते चले गए
मौसम के पहली बर्फ से, जो पिघलते चले गए
बंद मुठी मैं कैद रेत से फिसलते चले गए
आँखों मैं कतरा ख्वाब बन जो उतरे,तो नींद टूटी
उम्मीद की जो आस थी ,शीशे सा बन के टूटी
रिश्ते जो धुल से , बस उड़ते चले गए
स्वेटर के उन से जो उधड़ते चले गए
रिश्ते वो ओस से जो रोशनी न सह सके
रिश्ते जो थे मुकम्म ,पर हम न कह सके
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