Wednesday, May 04, 2011

कुछ रिश्ते ऐसे भी

कुछ रिश्ते ऐसे भी जिनका कोई छोर नहीं

कुछ रिश्ते ऐसे भी जिनको बंधे कोई डोर नहीं

कुछ रिश्ते जो पानी की लकीरों से लिखे गए

कुछ रिश्ते जो कहानी से कहे गए

कुछ रिश्ते ....

रेशम से जो उलझे तो उलझते चले गए

मौसम के पहली बर्फ से, जो पिघलते चले गए

बंद मुठी मैं कैद रेत से फिसलते चले गए

आँखों मैं कतरा ख्वाब बन जो उतरे,तो नींद टूटी

उम्मीद की जो आस थी ,शीशे सा बन के टूटी

रिश्ते जो धुल से , बस उड़ते चले गए

स्वेटर के उन से जो उधड़ते चले गए

रिश्ते वो ओस से जो रोशनी न सह सके

रिश्ते जो थे मुकम्म ,पर हम न कह सके

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