कुरेद के लकीरें रेत पर, उसने किस्मत का नक्शा बनाया
सीपों की बस्तियों को बुनते भटके से रास्ते थे
दरिया के फ़न को पीकर जो समंदर ही हो चले
उठे लहर बनकर आकाश लांघने
कायनात से हक अपना मांगने
है पसीने का मोल जो बस उतना ही मिले
दौलत के सारे दलदल नहीं उसके वास्ते थे
दर्द से ,दुआ से था उसने उसको सजाया
कुरेद के लकीरें रेत पर, उसने किस्मत का नक्शा बनाया
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