आज
दिल फिर से बगावत पर उतर आया है
और ज़िद पकड़ ली है
कि चाँद की पेशनी पर सितारे सजायेगा
बावला
बड़ी देर तक आसमान को घूरता रहा
और दूरियों से राकाबत पर उतर आया
अगर उसके हाथों में कहीं से कोई सुआ पढ़ जाता
तो अपने शिद्दत की डोर से
उफ़क़ को ही सी डालता
अब उसे कैसे कोई समझाए
की तकदीर के साहिल
सील तो सकते हैं
मिल नहीं सकते
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