मेरी रूह को
लग गए
हैं
शायद
पतंग के पैर
अपना सा लग रहा है
अब तक
था
जो गैर
फासले हैं मिट गये
धुल गयी है
बैर
मेरी रूह को
लग गए
हैं
शायद
पतंग के पैर
ना क़र्ज़ है
ना मर्ज़ है
ना कुछ बही में दर्ज़ है
ना ख्याहिश कोई
ना अर्ज़ है
ना संकोच है
ना हर्ज़ है
उड़ रही आकाश में
डोर के बगैर
मेरी रूह को
लग गए
हैं
शायद
पतंग के पैर
लग गए
हैं
शायद
पतंग के पैर
अपना सा लग रहा है
अब तक
था
जो गैर
फासले हैं मिट गये
धुल गयी है
बैर
मेरी रूह को
लग गए
हैं
शायद
पतंग के पैर
ना क़र्ज़ है
ना मर्ज़ है
ना कुछ बही में दर्ज़ है
ना ख्याहिश कोई
ना अर्ज़ है
ना संकोच है
ना हर्ज़ है
उड़ रही आकाश में
डोर के बगैर
मेरी रूह को
लग गए
हैं
शायद
पतंग के पैर
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