Thursday, December 19, 2013

सोचता हूँ

हर बार
यही सोचता हूँ
कि
मैं
तेरे करीब आऊँ
और
तेरे करम कि धूप में
बस
मैं ठहर जाऊँ
तेरे नूर
मेरी रूह पर
उतरे बन कर इनायत
नवाज़िश हो तेरी
और
मैं मुस्कुराऊँ

तुझे देखूँ
तुझे समझूँ
मैं
तुझ से बात करूँ
कभी
अपनी रूह से
मैं भी
मुलाकात करूँ
जिंदगी को
देखूँ
मैं भी
करीब से
मिलते हैं
नबी
यहाँ
कितने नसीब से

हर बार
यही सोचता हूँ
कि
मैं
तेरे करीब आऊँ
और
तेरे करम कि धूप में
बस
मैं ठहर जाऊँ
तेरे नूर
मेरी रूह पर
उतरे बन कर इनायत
नवाज़िश हो तेरी
और
मैं मुस्कुराऊँ

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