Friday, December 16, 2011

....दर्द

अब छोड़ भी दो ये बातें 
अब रहने दो ये कहानी 
कौन वकील है , कौन है क़ाज़ी 
है जिसको जिरह सुनानी 
हो क्योँ बहस अब, क्योँ हों दलीलें 
अब जीत क्या अब हार 
दुनिया मिल भी जाये तो क्या करना है 
तेरे बिन जीना भी तो आंखिर मरना है 

तुम 
हो नहीं , देखो 
कुछ भी तो नहीं बदला है 
अब भी सूरज ये आसमान में सारा दिन चलता है 
रात है आती आज भी ओड़े चाँद और सितारे 
रंग वही लाती है फिर से ऋतुएँ सरे 
अब भी बरसतें हैं बादल और जड़े जम जातें हैं 
बस ज़ज्बात ये मेरे है जो थम जातें हैं 
बस ज़ज्बात ये मेरे है जो थम जातें हैं 
मुझे थमने दो , मुझे जमने दो 
मुझे पत्थर बन जाने दो 
आग लगा दो जज्बातों को जलने दो 
पत्थर को तड़प की आंच में पिघलने दो 
दरया है ये दर्द का . इसको बहने दो 
अब छोड़े ये कहानी, रहने दो 

तुम 
दूर गए जब मुझसे   
अब क्या तेरा क्या मेरा 
रात तू ले ले वापस अपनी, लौटा दे मेरा सवेरा 
मुझे नहीं है ढोने हैं अब यादों के लम्बे साए 
तुम चले गए और हैं जो मेरे हिस्से में आये 
तू धुंध सी बन क्यूँ आँखों में अब भी समायी है 
क्या मेरे मुकद्दर में नहीं लिखी तुझ से रिहाई है 
ये कोहरा छंट जाने  दे, तू हिस्से बाँट जाने दे 
मरहम न लगा मुझपर तू, तू मुझको कट जाने दे 
तू मुझको कट जाने दे 

टुकडो को दफ़न कर दे, दर्द की खाई पट जाने दे 
मुझको मिलने दे मिटटी में, ये ग्रहण तू हट जाने दे 
.................................... ये  ग्रहण तू हट जाने दे 

मुझे बन के हवा , मुझे बन के सबा 
मुझे बन के हवा , मुझे बन के सबा
आज़ाद फिजा में बहने दे  
अब छोड़ भी दे ये बातें 
अब ये कहानी रहने दे ........

1 comment: