क्योँ खुद को ढूंढता हूँ मैं
मुझको नहीं पता
जब खुद को न पा सका तो
फिर क्यूँ मिले खुदा
इबादत का वहम अच्छा है
दिल को सुकून देता है
दर्द दबा देता लेता है
कुछ तो जूनून देता है
पर असल में तो करता है
खुद से मुझे जुदा
जब खुद को न पा सका तो
फिर क्यूँ मिले खुदा
मुझको नहीं पता
जब खुद को न पा सका तो
फिर क्यूँ मिले खुदा
इबादत का वहम अच्छा है
दिल को सुकून देता है
दर्द दबा देता लेता है
कुछ तो जूनून देता है
पर असल में तो करता है
खुद से मुझे जुदा
जब खुद को न पा सका तो
फिर क्यूँ मिले खुदा
Skand very philosophical but at the cost of being called a heretic , if one cannot find his own self how is he going to attain God..very good thoughts. Like this stuff. Keep it up.
ReplyDeleteDeepak
Skand it's so thought provoking.
ReplyDeleteibaadat apne andar ke chotey se 'i' ki kar lein hum, to baaki sab apney aap saaf ho jayega..
i like it when your writing style emerges in this way