Saturday, November 26, 2011

नूर

1


दुआ को हाथ उठा , मांग उसकी निगेहबानी
वक्त ढल जायेगा , होगी खाख़ जिंदगानी
जो उस से कर तू इश्क , तो इतना सुरूर होगा
रूह रश्क कर उठेगी उसके हदूद में
घुल जायेगा तू कतरा, उसके वजूद में
रह जायेगा जो बांकी वो उसका ही नूर होगा



2


इबादत की सुबह की धूप है रहमत
जो तुझ पर इल्म बन कर छाई है
बाँट दे ये सफा तू जरुरतमंदों में
तेरे हिस्सें में तो बस रहनुमाई है

No comments:

Post a Comment